…अरे आशा! जल्दी तैयार हो जाओ, हमें कहीं जाना है ।
“कहीं जाना है?” “किधर?”
किसी की शादी है, बस जल्दी से सादे परन्तु थोड़े अच्छे से कपडे पहन लो और चलो।
“चलिए, हम तैयार हैं “।
शादी में पहुंचे तो फेरे शुरू होने ही वाले थे । शर्मा जी और उनकी पत्नी को देखते ही सब ऐसे खुश हुए की जैसे उनके घर का कोई सबसे ज़रूरी सदस्य आ गया हो । और कुछ बच्चो और लोगो ने आकर तो इन दोनों के पाव भी छुए । तभी एक अधेड़ उम्र की महिला आशा जी के पास आई ओर बोली –
“भगवान आपको और आपके बच्चो को बनाए रखे, खूब उन्नति दे, आपकी जोड़ी हमेशा बनी रहे ” ।”आज अगर मेरी बेटी का घर बस रहा है तो वो बस आपकी कृपा से,नहीं तो हम गरीब कहाँ ये सब कर पाते ” ।
ये सब सुनते ही आशा जी के होश उड़ गए, ओर इतने में सामने से एक खूबसूरत सी २०-२२ वर्ष की दुल्हन के कपड़ो में सजी-धजी लड़की मंडप में आके बैठ गयी ।
“सुनिए ये सब क्या चक्कर है, ये महिला ऐसा क्यों कह रही थी? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा “।
आशा जी ने शर्मा जी से हैरानी से पुछा ।
अब आशा जी बिलकुल असमंजस में ओर परेशां, की ये सब हो क्या रहा है ।अभी वे अपनी सोच में डूबी ही थी की लड़की का चाचा वहां आया और उनसे बतियाने लगा।
“आज कल कहाँ ऐसे लोग मिलते हैं, जिन लड़कियों को जानते भी नहीं उनका पूरा पूरा विवाह करवा देते हैं, ये तो भला हो शर्मा जी का जो हमारी गुड़िया का विवाह इतनी धूम से हो रहा है”।
तब उनकी बातों से आशा जी को पता चला की उनके पति कितनी गरीब लड़कियों के विवाह करवा चुके हैं ।और घर में इस बात का ज़िक्र तक नहीं किया कभी । उस दिन आशा जी के मन में अपने पति के लिए प्यार ओर इज़्ज़त दोनों और बढ़ गए ।
खूब ज़िंदा-दिल, दूसरो के दुःख में दुखी और दूसरो के सुख में खुश । किसी की परेशानी देखी नहीं की चल दिए मदद करने । दिसंबर की कड़कती ठण्ड में बस स्टैंड से लौटते रिक्क्षा वाले को देखा नंगे पैर तो दे दिए तुरंत अपने जूते उतार के उसको । घर में कोई भिखारी आया तो दे दिए उठा के कम्बल , चादर या कोई ज़रूरत की चीज़ । भूखा आया तो भर पेट खाना ही खिला दिया । राह चलते किसी गरीब को ठण्ड में देखा तो अपना स्वेटर उतार के दे आये । यकीं नहीं होता न की ऐसा भी आज के ज़माने में कोई हो सकता है! तो सुनिए ऐसे ही थे हमारे डी.के. शर्मा, यानी देवेंद्र शर्मा जी ।
और यहीं से बताते हैं आपको देवेंद्र और आशा – ‘देवाशा’ कि कहानी ।
शर्मा जी के छोटे परिवार में उनकी पत्नी और उनके दो बच्चे थे । शान, उनका बड़ा बेटा कम्यूटर इंजीनियरिंग कर नौकरी लेके विदेश चला गया और छोटी लड़की गुंजा की उन्होंने एक होनहार कलकत्ता का ब्राह्मण लड़का देख शादी कर दी ।
दोनों बच्चे एकदम अपने माँ-बाप की परछाई । एक तरफ माँ की सादगी, भोलापन, मन एकदम साफ़ बिना कोई छल-कपट वाला , तो दूसरी ओर अपने पापा की ज़िंदादिली, खुश-मिज़ाज़ी और हमेशा दूसरो की मदद को तैयार ।
आज गुंजा की शादी को ६ साल हो गए हैं और उसका एक प्यारा सा २ साल का बेटा है ।
शर्मा जी अंदर कमरे में बिस्तर पर लेटे हुए – “अरे आशा, आई क्या गुंजा, शिवि आया मेरा बच्चा?”
इतने में दरवाज़ा खुला और गुंजा अपने पति और बेटे शिवि के संग अंदर आती हुई और अपनी माँ से गले मिलती हुई – “मम्मी राम-राम!”, “पापा कैसे हैं अब?”
“पता नहीं, बुखार जा ही नहीं रहा”।
गुंजा अंदर जाते हुए ओर ख़ुशी से चिल्लाते हुए – “पापा!!!! कैसे हो आप?” “ये क्या हाल बना रखा है?” और साथ ही शिवि भी भागता हुआ अपने नानू की गोद में चढ़ गया । “राम-राम नानू”।
“कुछ नहीं बस बुखार नहीं जा रा, सभी डॉक्टरों को दिखा लिया समझ नहीं आया क्या है” ।
“शाम को मैं आपको सरकारी हॉस्पिटल में लेके जाउंगी वही ठीक बताते हैं” । शाम को डॉक्टर को दिखते ही उन्होंने शर्मा जी की गर्दन की गाँठ देखी और टेस्ट करवा दिया ।
रिपोर्ट अगले दिन मिलने वाली थी परन्तु गुंजा और उसकी माँ का दिल तो बैठ ही चुका था । शायद अंदेशा हो गया था की क्या है । उधर शान भी परेशां था पर आश्वासन देता रहा कि- “पापा ठीक हैं, डरो मत” ।
दुसरे दिन गुंजा डरते डरते रिपोर्ट लेने गयी और वही हुआ जिसका डर था ।
“शर्मा जी को कैंसर है, वो भी लास्ट स्टेज “।
गुंजा के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी और उसने तुरंत अपने भाई को फ़ोन किआ और बताया की दिल्ली ले जाना है पापा को, कल ही ।
“तू चिंता मत कर, तू तैयारी कर, मैं पैसो का इंतज़ाम करता हूँ” ।
उस शाम घर जाना गुंजा की ज़िन्दगी का शायद सबसे बड़ा रास्ता था और वो उसने कैसे तय किआ उसीका दिल जानता है ।घर पहुंची और माँ को गले लगाते ही रोना जैसे रुका ही नहीं । माँ भी जान चुकी थी की क्या है ।
शर्मा जी ने बिटिया को देखते ही मुस्कुराकर कहा – “हाँ हाँ जानता हूँ, इतनी जल्दी कहीं नहीं जा रहा मैं” । “चिंता मत करो” ।
उसके बाद से बस एक दौड़ सी लग गयी । गुंजा उन्हें अपने घर दिल्ली ले आई और उनका इलाज शुरू हो गया । २ कीमो भी अच्छी हो गयी । अब शर्मा जी का स्वस्थ भी थोड़ा अच्छा दिखने लगा ।
दूसरी कीमो के बाद गुंजा के घर से जब वे अपने घर पानीपत के लिए निकले तो अचानक ही गाडी में रात में उनकी तबियत बिगड़ने लगी ।आशा जी ने बहुत समझाया की गुंजा के वापस चलो, पर वे कहाँ मान ने वाले थे । बोले – “अब गुंजा के नहीं आशा, अब अपने घर चल”।
अगले दिन बहुत ही कठिनाई से आशा जी अपने पड़ोसियों की मदद से उन्हें गाडी में बिठाकर दिल्ली लाइ क्यूंकि उनके पैरो की जान चली गयी थी । शान भी विदेश से अगले ही दिन का टिकट लेकर आ गया ।
वो राखी के दिन सुबह सुबह पंहुचा और हस्पताल में कम से कम नहीं तो १० साल बाद दोनों भाई-बहन ने स्काइप पर नहीं आमने सामने राखी का त्यौहार मनाया ।
शर्मा जी तो अब ५ दिन से आईसीयू में थे पर बच्चो के छूने से वो नलियो में बंधे हाथ से ज़रा सा अपना हाथ सहला के जाता देते – “हाँ मै समझ रहा हूँ की तुम हो मेरे पास” ।
छठे दिन की सुबह करीब दस बजे डॉक्टर दौड़ता शान और गुंजा के पास आईसीयू से बहार आया और बोला – “उनके पास मुश्किल से ५-१० मिनट हैं क्यूंकि उनकी साँसे गिर रही हैं” ।
उनकी तबियत बिगड़ी । शान उनके सर पे हाथ फहराता “ॐ त्रयम्बकं” का जाप करता रहा और गुंजा रट रट उनके पैर पे हाथ सहलाती “ॐ नमः शिवाये” का जाप करती रही । उनकी पत्नी जब तक आईसीयू के दरवाज़े तक पहुंची, शर्मा जी की आँख से एक आंसू गिरा और पत्नी के देखने से शायद २ सेकंड पहले उन्होंने अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर ली ।
“आप तो कहते थे की मैं आपसे पहले जाउंगी और आज धोका देकर मुझे छोड़ गए अकेला”?
इतना बोलते ही आशा जी के आंसुओ का सैलाब बह चला।
इस तरह सदा मुस्कुराने वाले, लाख दुःख में भी चेहरे पर शिकन न आने वाले शर्मा जी ढाई महीने के अंदर अंदर दुनिया से विदा हो गए । शायद उनके अच्छे करम ही थे की इतनी गंभीर बिमारी होने के बाद भी वो बिना कष्ट के मुस्कुराते हुए इस दुनिया से भगवान का नाम सुनते सुनते गए ।
अगर शर्मा जी उस दिन जी भी जाते तो शायद कॉमा में होते क्यूंकि कैंसर के सेल्स ने उनके दिमाग में प्रवेश कर लिया था जो की ठीक नहीं हो सकता था ।
उनकी पत्नी और उनके बच्चे आज भी उन्हें खूब मुस्कुराकर याद करते हैं और उनकी बात याद रखते हैं – “जीवन में कुछ करना है तो दूसरो के लिए करो” । “जेब में पैसे हो या न हो पर दिल में दूसरो के लिए जगह हमेशा खुली रहनी चाहिए” ।
आज उनका परिवार दिलदार शर्मा जी की यही बात सोच के तसल्ली कर लेता है की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है । हम आज की सोचते हैं ओर भगवान् बहुत आगे की । जो हो रहा हो उसे ख़ुशी से अपनाओ और जो न मिले उसे भूल जाओ ।
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Hey all, Do read my story. Its really close to my heart. Do pour in some love too 🙂