बाहर गिरती बारिश के साथ ही सृष्टि के मन के भीतर भी कुछ भीग सा रहा था। आँसुओं को रोक कर काम निपटाने वो किचन की तरफ चल दी वरना गालियों की बौछार और ताने सुनने पड़ते हैं। रोहित के ऑफिस निकलते ही सृष्टि फिर यादों का पिटारा खोलकर बैठ गई ,क्योंकि यही यादें अब जीने की हिम्मत देती हैं। कितना सुन्दर रिश्ता था उसका और रोहित का , रोहित सृष्टि का सीनियर था और पढ़ने में अच्छा था। रैगिंग से भोली सी सृष्टि को बचाया और दोनों को प्यार हो गया।
पढ़ाई के बाद नौकरी और फिर शादी कर ली रोहित और सृष्टि ने। कुछ दिन नयी शादी के खुमार में अच्छे बीते और फिर रोहित का एक ऐसा रूप सृष्टि के सामने आया जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हर बात पर चीखना- चिल्लाना ,किसी भी छोटी सी बात पर इतना गुस्सा हो जाता था रोहित कि कभी-कभी तो सृष्टि कि समझ में ही नहीं आता था कि क्या करे कभी रोती वो तो कभी गिड़गिड़ाती पर रोहित कहाँ मानने वाला इंसान था , हमदर्दी और परवाह करना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं था. सृष्टि जिसने अपने घर में रुमाल भी कभी नहीं धोये थे , आज बर्तन -झाड़ू करती थी, रोहित को उसके जूते पॉलिश तक करके देती थी और वहीं जूते वो फेंक कर कहता था तुम्हे जूते पॉलिश करने भी नहीं आते ,किसी काम की नहीं हो तुम।
इन सबके बीच ही उनके बीच एक नन्ही परी भी आ गई जिसकी देखभाल का जिम्मा पूरी तरह से सृष्टि का ही था। रोहित बेटी को हाथ भी नहीं लगाता था। फिर भी सृष्टि चुप ही रही।
फिर एक दिन रोहित ने उसे कहा कि तुम फिर से कोई नौकरी क्यों नहीं ज्वाइन करती हो. तब सृष्टि ने भी सोचा कि शायद बाहर निकलूंगी तो इस घुटन से भी आज़ादी मिलेगी और चार पैसे घर में ही आएंगे. सोचकर कई जगह पर आवेदन किया और एक अच्छे स्कूल में उसे टीचर की जॉब भी मिल गई। खुश थी वो पर घर के और बच्चे के ढेरो काम और घर वापस आने पर बिखरा हुआ घर और रोती हुई बच्ची उसके अगले दिन काम पर जाने की इच्छा और हिम्मत दोनों ही को तोड़ देते थे।
आज नन्हीं परी बीमार थी और सृष्टि के रोहित से छुट्टी लेने को कहते ही वो उस पर बरस पड़ा ‘तुम्हे तो घूमने जाने की पड़ी रहती है। बच्ची तुम्हारी है और काम पर भी तुमको ही जाना है कैसे मैनेज करना है ये तुम देखो ये सब मेरा काम नहीं’ , ये कहकर अपना पल्ला झाड़ कर ऑफिस चला गया।
सृष्टि ने इस रूकती हुई बारिश के साथ ही इस सोच की झड़ी को भी लगाम लगाई और मन ही मन कुछ फैसला करते हुए उठ गई अपना और परी का सूटकेस पैक किया और हलके मन और एक निश्चय के साथ रोहित का इंतज़ार करने लगी.शाम को रोहित आया तो वह सूटकेस देखकर अपना मुँह खोलने ही वाला था कि सृष्टि ने उसे रोका और कहा ‘रोहित आज तक तुम बोलते रहे मैं सुनती रही तुमने ताने दिए मुझे ,परी के होने पर मुझे ज़िम्मेदार ठहराया जैसे कि मैं उसे अकेले ही इस दुनिया में लायी थी।तुमने हमेशा ही अपने ही मन की की। आज कमाने के बावजूद मेरा कोई सम्मान नहीं। मेरे कमाए पैसे मैं खर्च नहीं कर सकती।दरअसल गलती पूरी तरह तुम्हारी नहीं मेरी भी है क्योंकि अपने आत्मसम्मान को कुचलने का मौका तुम्हें मैने ही दिया है। प्यार किया था तुमसे मैंने पर तुमने तो मुझे गुलाम बना दिया।
पर अब और नहीं रोहित मैं और परी अब यहाँ से जा रहे हैं, क्योंकि रिहाई चाहिए अब मुझे। ऐसा कहकर सृष्टि सूटकेस उठाकर परी के साथ घर से निकल पड़ी ,एक नयी शुरुआत के लिए।
द्वारा
स्मिता सक्सेना
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